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हाई ब्लड प्रैशर को करें जड़ से खत्म

उच्च रक्तचाप (High BP) का कारण, लक्षण, टेस्ट और उपचार

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उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर, हाइपरटेंशन)

बढ़ा हुआ रक्तचाप अनेक बीमारियों का घर है। जीवन के लिए जरूरी शरीर के तमाम प्रमुख अंग उसके लगातार दाब से धीरे-धीरे साथ छोड़ते जाते हैं। किंतु कोई शुरू में ही सजग हो जाए और रक्तचाप को संयत कर ले, तो कोई परेशानी नहीं आती। जीवन में जरा-सा अनुशासन, स्वस्थ खान-पान, व्यायाम, मानसिक विश्राम और अनिवार्य होने पर दवाएँ रक्तचाप को सामान्य सीमाओं में लौटा लाते हैं। इन परिवर्तनों से शरीर और मन भी स्फूर्त बन जाते हैं। ( एंजाइना पैक्टोरिस, छाती का दर्द, हार्ट अटैक )

रक्तचाप क्या है ? what is the blood PRESSURE?

वह दाब, जो बहता हुआ रक्त धमनियों की दीवार पर डालता है, रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर कहलाता है। यह दाब दिल की हर धड़कन के साथ अपनी अधिकतम और न्यूनतम सीमाओं को छूता रहता है। जिस समय दिल सिकुड़ता है, दिल में मौजूद रक्त जोर से धमनियों में फक दिया जाता है। उस समय धमनियों में रक्त का दाब अपनी अधिकतम सीमा पर पहँच जाता है। उसे ही ‘ऊपर का’ या सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं। प्रत्येक सिकड़न के बाद दिल जरा-सा सुस्ताता भी है। इस दौरान धमनियों में रक्त का दबाव अपनी न्यूनतम सीमा पर पहुँच जाता है। इसे ‘निचला’ या डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं।

उच्च रक्तचाप के मायने क्या हैं ? what is the high blood pressure?

 उच्च रक्तचाप
उच्च रक्तचाप

आमतौर से दोनों दाब-सिस्टोलिक एवं डायस्टोलिक-एक सुनिश्चित सीमा में रहते हैं। जब किसी व्यक्ति में यह दाब सामान्य स्तर से अधिक रहने लगे, तो उसे उच्च रक्तचाप का रोगी मान लिया जाता है।

रक्तचाप की सामान्य सीमाएँ क्या हैं ? what is the normal value of blood pressure?

सिस्टोलिक दाब 130 मिलीमीटर मरक्यूरी और डायस्टोलिक दाब 85 मिलीमीटर मरक्यूरी से कम बना रहे तो सामान्य है। पर अनुकूलतम दाब की सीमाएँ इससे कुछ कम हैं। रक्तचाप 120/80 प्वाइंट पर रहे तो सबसे अच्छा है। 130 से 139 का सिस्टोलिक दाब और 85 से 89 का डायस्टोलिक दाब भी असामान्य नहीं है, पर सावधान हो जाने के लिए चेतावनी है। ऐसे में हर साल जाँच कराना जरूरी हो जाता है। __ लेकिन रक्तचाप का 140 और 90 प्वाइंट को छू लेना या पार कर लेना निश्चित रूप से उच्च रक्तचाप की श्रेणी में आ जाता है। हाँ, यह जरूर है कि इसके लिए रक्तचाप की एक रिकार्डिंग पर विश्वास नहीं किया जाता, बल्कि इसकी दुबारा-तिबारा पुष्टि की  जाती है। 

रक्तचाप की जाँच किसी भी समय की जा सकती है ? Can blood pressure be checked at any time?

याँ क्यों नहीं ! पर इसे मापने के कुछ साधारण नियम हैं, जिनका पालन न किया जाए तो रीडिंग गलत आ सकती है। ये नियम इस प्रकार हैं : 

  • व्यक्ति कुर्सी पर पीठ टिका कर आराम से बैठा होना चाहिए और उसकी बाँह और रक्तचाप मापक-यंत्र उसके दिल के बराबर की ऊँचाई पर होने चाहिए। 
  • जाँच से कम-से-कम 30 मिनट पहले तक उसे न तो चाय-कॉफी लेनी चाहिए, न धूम्रपान करना चाहिए।
  • जाँच से कम-से-कम 5 मिनट पहले से वह आराम की मुद्रा में होना चाहिए। यह नहीं कि एकदम भाग कर हाँफते-हाँफते डॉक्टर के पास पहुंचे और रक्तचाप की जाँच करा ले।

लेकिन सुनते हैं, कुछ लोगों का ब्लड प्रेशर डॉक्टर को देखते ही बढ़ जाता है ?

यह बात सच है। इसे ‘वाइट-कोट हाइपरटेंशन’ कहा जाता है। ऐसा शक हो तो घर पर रक्तचाप माप कर ही मामला स्पष्ट हो पाता है। तब रक्तचाप सामान्य मिलता है, जबकि डॉक्टर के क्लीनिक में पहुँचते ही रक्तचाप फिर बढ़ जाता है। इससे पता चलता है कि व्यक्ति अस्पताल या क्लीनिक में पहुंचने से ही इतने तनाव में आ जाता है कि उसका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।

वयस्कों में रक्तचाप : सामान्य-असामान्य सीमाएँ

अवस्था सिस्टोलिक रक्तचाप
(मिलीमीटर मरक्यूरी
)
डायस्टोलिक रक्तचाप
(मिलीमीटर मरक्यूरी)
अनुकूल (Favourable ) 120 80
सामान्य (Normal) 130 से कम 85 से कम
उच्च सामान्य Normal High) 130-139 85-89
उच्च रक्तचाप High Blood Pressure
प्रथम अवस्था 140-159 90-99
दूसरी अवस्था 160-179 100-109
तीसरी अवस्था 180 या अधिक
110 या अधिक 

उच्च रक्तचाप होने के कारण क्या होते हैं?What causes high blood pressure?

उच्च रक्तचाप के कुछ ही रोगियों में रक्तचाप बढ़ने का कोई निश्चित कारण मिल पाता है, लेकिन 90 प्रतिशत से अधिक रोगियों में कोई ठीक-ठाक नहीं बता सकता कि रोग कैसे और क्यों हुआ है। शायद इसके बहुत से कारण हैं ।

उच्च रक्तचाप होने के कारण
उच्च रक्तचाप होने के कारण
  • इनमें सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण समूह गुर्दे के रोग हैं। दूसरा बड़ा समूह हार्मोनल असंतुलन और स्त्रियों में गर्भ-निरोध के लिए ली जानेवाली गोलियाँ हैं। फिर कुछ धमनीय और तंत्रिकीय विकार भी हैं जो रक्तचाप को बढ़ा देते हैं।
  • आनुवंशिकता (हेरेडिटी) बहुत महत्त्वपूर्ण है, पर उससे भी इतना ही पता लगता है कि रोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी होने की क्षमता रखता है, यह स्पष्ट नही होता कि रोग क्यों होता है।
  • सभी वैज्ञानिक अध्ययनों से यह साफ पता चलता है कि जीवन के तौर-तरीके इससे गहरे जुड़े हुए हैं। कोई समाज जितना अधिक विकसित है, उसमें उच्च रक्तचाप के मामले उतने ही अधिक हैं। जंगलों में बसे आदिवासियों में रक्तचाप बढ़ने के मामले न के बराबर हैं।
  • सभ्य समाज के रहन-सहन में कुछ चाज खास महत्त्व रखती हैं, जिन पर नजर रखकर रक्तचाप की वृधि से बचा जा सकता है। भोजन में अधिक नमक, जरूरत स या कैलोरी, कम शारीरिक मेहनत, शराबखोरी और पोटेशियमन्यु फल और शाक-सब्जियाँ कम मात्रा में लेने का आधुनिक चालक  रक्तचाप में वृद्धि-कारक है।
  • लगातार बने रहने वाला तनाव अस्वास्थ्यकारी है। उससे शरीर की जैव-रासायनिकी पर प्रार प्रभाव पड़ता है और रक्तचाप में वृद्धि होती है।
  • अध्ययनों में पाया गया है कि शारीरिक मेहनत बढ़ाने, मोटापा घटाने, अधिक मात्रा में प्राकृतिक पोटेशियम-युक्त फल-सब्जियाँ लेने, शराब छोड़ने और नमक घटाने से रक्तचाप में कुछ हद तक कमी लाई जा सकती है।(मोटापा खत्म करने के उपाए)

उच्च रक्तचाप के लक्षण क्या होते हैं? What are the symptoms of high blood pressure?

उच्च रक्तचाप के लक्षण
उच्च रक्तचाप के लक्षण

अधिकतर रोगियों को इसका बोध ही नहीं होता कि उनका रक्तचाप बढ़ा हुआ है। यह रोग बिलकुल गुपचुप पड़ा रहता है  और अपने होने का कोई सुराग नहीं देता। इसीलिए इसे किलर’ भी कहा जाता है। रोग का पता लगाने का विश्वसनीय तरीका यही है कि समय-समय पर और कम वर्ष में एक बार हर व्यक्ति अपना रक्तचाप जरूर जाँच करवाये।

  • अनेक रोगियों में रक्तचाप के बढ़े होने का पता ही तब चला है जब उसका कुप्रभाव शरीर के महत्त्वपूर्ण अंगों को रुग्ण बना चुका होता है। दिल का दौरा, ब्रेन हेमरेज, गुर्दो का ठप्प हो जाना, आँख के पर्दे में खून का रिसाव हो जाना, दिल का फैल जाना जैसी कष्टदायक स्थितियाँ हो जाने पर ही मालूम पड़ता है कि रक्तचाप बढ़ा हुआ था। 
  • कुछ लोगों को तो रक्तचाप बढ़ते ही गुस्सा आने लगता है।
  • यह रोग अंदर ही अंदर बढ़ सकता है। फिर भी सिर में दर्द उठे, खासकर सिर के पिछले हिस्से में और सुबह बिस्तर से उठते ही, दिल की धड़कन भागती मालूम हो, नकसीर हो, साँस फूलती हो, थकान महसूस होने लगे, घुमरी आए तो रक्तचाप दिखवा लेने में ही भलाई है।


उच्च रक्तचाप का पता चलने पर डॉक्टर क्या-क्या जाँच कराते है? What tests do doctors perform when high blood pressure is detected?

उच्च रक्तचाप  जाँच
उच्च रक्तचाप जाँच

खून की कई तरह की जाँचें की जाती हैं जैसे Lipid profile, Kidney function Test,Aldostrone, Blood Suger Level जिनसे शरीर का , रासायनिकी की स्थिति पता चलती है. डायबिटीज होने या न की जानकारी मिलती है, गुर्दो के बारे में पता चलता है पेट का अल्ट्रासाउंड किया जाता है जिससे गुर्दो की जाँच और उन कुछ विकारों की तलाश की जाती है जो रक्तचाप को बढ़ा ई.सी.जी. लिया जाता है जिससे दिल की स्थिति का ज जाता है; और छाती का एक्स-रे लिया जाता है.

कोशिश होती है कि यह पता लग सके कि रक्तचाप किसी दूसरे रोग के कारण तो नहीं बढ़ा, उसने अब तक शरीर पर क्या कुप्रभाव डाला है और ऐसी कोई अप्रिय स्थितियाँ तो नहीं हैं जिनके होने से उच्च रक्तचाप का जोखिम बढ़ जाता है।

उच्च रक्तचाप का इलाज क्या है ? What is the treatment of hypertension?

यही कि जीवन-शैली में सुधार लाकर और जरूरी हो तो दवाओं की मदद से रक्तचाप को सामान्य स्तर पर लाया जाए और आगे भी उस पर पूरी निगरानी रखी जाए और यह बढ़े नहीं। उसकी जटिलताओं से बचा जा सके और जीवन स्वस्थ बना रहे। शरीर का कोई अंग रूठने न पाए और जिंदगी भरी-पूरी बनी रहे।

जीवन-शैली में क्या-क्या सुधार होते हैं ? What are the improvements in lifestyle?

कई बातों पर ध्यान देने की जरूरत होती है। कहीं अगर वजन अधिक हो, तो उसे घटाना सबसे जरूरी है। सिर्फ इसी से कई लोगों का रक्तचाप कम हो जाता है। इसके लिए दो प्रण लेने पड़ते हैं : कम खाएँ और अधिक व्यायाम करें।

  • खाने में ताजा फल-सब्जी पर जोर रखना चाहिए तथा तली हुई चीजें, पी-मक्खन और मलाई को तिलांजलि दे देनी चाहिए। इसस कोलेस्ट्रोल भी घटता है, पोटेशियम और फाइबर भी अधिक मात्रा में मिलते हैं और कुल कैलोरी कम करना भी आसान हो जाता है। एक ही तीर से कई निशाने सध जाते हैं।
  •  रक्तचाप पर नियंत्रण पाने के लिए नमक कम करने की नेक सलाह तो हमेशा से ही दी जाती रही है। इस पर पालन करना मश्किल नहीं है। दरअसल जरूरत फीकी दाल-सब्जी खाने की नहीं, तरह-तरह की अन्य नमकीन चीजें जैसे दाल-भुजिया, अचार, चिप्स, वेफर, चाट-पकौड़ी, भुजिया, चटनी, सॉस, डिब्बाबंद खाद्य, प्रोसेस्ड चीज़, पेस्ट्री, केक, आईसक्रीम, नमकीन बिस्कुट, फलों में लीची और तरबूज, नमकीन मेवे और पॉप कॉर्न न लेने की है। हाल के अध्ययनों से यह भी पता चला है कि नमक कम करना हर रक्तचाप के रोगी के लिए लाभदायक सिद्ध नहीं होता।
  • खान-पान की ही दृष्टि से यह भी बिलकुल साफ है कि मदिरा का अधिक मात्रा में लेना और धूम्रपान करना उच्च रक्तचाप में नुकसान पहुँचाता है। इन दोनों व्यसनों को छोड़ देने में ही अच्छाई है। बहुत अधिक मदिरा लेने वालों में मदिरा छोड़ने पर पहले कुछ दिन के लिए रक्तचाप बढ़ता है, लेकिन कुछ ही दिन बाद रक्तचाप घटने लगता है।
  • कुछ अन्य अध्ययनों में यह बात भी निकल कर आई है कि खान-पान में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम और मैग्नीशियम और रेशेदार खाद्य प्रचुर मात्रा में लेना भी उच्च रक्तचाप में फायदेमंद हो सकता है।
  • शाकाहार मांसाहार की तुलना में अधिक स्वास्थ्यकारी है, क्योंकि उसमें न सिर्फ कोलेस्ट्रोल नहीं होता, बल्कि पोटेशियम, मैग्नीशियम और रेशे की मात्रा भी अधिक होती है। कैलोरी की दृष्टि से भी शाक-सब्जी, अनाज और फल अधिक संतुलित भोजन हैं।
  • फिर शारीरिक व्यायाम पर ध्यान देना भी निहायत जरूरी है। स्वास्थ्य अनुमति दे तो रोजाना 45 मिनट की चुस्त गति से सैर करना या तैरना और हलका-फुलका व्यायाम करना कई प्रकार से लाभदायक है। इससे रक्तचाप में कमी आती है, दिल की  तंदुरुस्ती बढ़ती है, शुगर पर कंट्रोल बेहतर बनता है, रक्त संचार स्फूर्त होता है, पेशियों में चुस्ती आती है, वजन घटाने में मदद मिलती है  ( पित्त की पथरी के घरेलू उपचार )

उच्च रक्तचाप मे दवाएँ कितनी जरूरी हैं?How important are medicines in high blood pressure?

जिन मरीज़ो की जीवन-पध्दति मे सुधार से रक्तचाप काबू मे नहीं आता. उन्हें दवाएँ लेनी पड़ती हैं। प्रत्येक मामले में व्यक्ति-विशेष की जरूरत के हिसाब से दवाओं का चयन होता है और उनकी खराक तय की जाती है। प्रयत्न यह होता है कि कम-से-कम दवा अच्छे से अच्छा असर दिखाए।

उच्च रक्तचाप के इलाज में सबसे सफल दवाएँ कौन-सी हैं ?What are the most successful drugs in the treatment of hypertension?

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उच्च रक्तचाप सफल दवाएँ

कई दवाएँ हैं, सभी अपने-अपने ढंग से उपयोगी हैं। प्रत्येक का काम करने का ढंग भी अलग है, उन पर अलग-अलग सीमाएँ भी हैं और उनके अलग-अलग पार्श्व प्रभाव भी हैं।  कुछ दवाएँ पेशाब की मात्रा बढ़ाती हैं, जिनमें क्लोरथेलीडॉन (हायग्रोटॉन), हायड्रोक्लोरोथायजाइड (ऐसिड्रिक्स), फ्यूरोसेमाइड (लेसिक्स) आदि प्रमुख हैं।

कुछ दवाएँ रक्तचाप को नियंत्रित करने वाली तंत्रिकीय प्रणाली और हृदय पर असर दिखा कर रक्तचाप नीचे लाती हैं। इनकी आगे कई श्रेणियाँ हैं। बीटा-ब्लॉकर दवाएँ जैसे एटिनोलॉल, मेटोप्रोलॉल, नेडीलॉल इनमें प्रमुख हैं। कुछ अल्फा ब्लॉकर दवाएँ भी हैं, जैसे प्रेजोसीन (मिनीप्रेस), टेराज़ोसीन (हाइड्रीन)

कुछ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर असर करती हैं जैसे मिथाइलडोपा (एल्डोमेट), क्लोनीडिन (केटाप्रेस)

कुछ दवाएँ एसा हैं जो धमनियों में फैलाव लाकर रक्तचाप में कमी लाती हैं जस हाइड्रेलाजिन (एप्रेसोलिन)। पिछले कुछ सालों में कैल्शियम एटगानिस्ट जैसे डिलटियाजेम (कार्डिजेम), विरेपामिल (आइसोप्टिन), नफाडपिन (प्रोकार्डिया एक्सएल) और एंजियोटेंसिन कनवर्टिंग  एंजाइम इन्हिबिटर जैसे लिसिनोप्रिल (लिस्टरिल), लोसार्टन पोस (रिपेस) ने भी अपना एक विशेष स्थान बनाया है।

नोट- इनमे से कोई भी दवाइयाँ डॉक्टर के सलाह के बिना न लें.  

क्या ये दवाएँ नुकसान नहीं करतीं ?

हो सकता है कि किसी-किसी रोगी में कोई पार्श्व प्रभाव पैटा जाएँ, लेकिन ऐसी स्थिति में डॉक्टर दवा बदलकर स्थिति को सँभाल लेता है।

 

 



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