पार्किनसन रोग क्या है ?
3,826 total views
पार्किनसन रोग मध्यमवय और बुढ़ापे का मर्ज है। इसमें हाथ-पैरों में कंपन आ जाती है, मांसपेशियों की ताकत कम हो जाती है, शरीर आगे की तरफ झुक जाता है, चाल में घिसटन आ जाती है, चेहरा भावशून्य हो जाता है और शरीर का संतुलन गड्डमड्ड हो जाता है। दवाओं, फिजिकल थेरेपी और कुछेक मामलों में सर्जरी द्वारा इस पर काबू पाया जा सकता है। लेकिन दवा के साथ-साथ परिवारजनों और मित्रों का प्यार और सहयोग भी बहुत जरूरी होता है। इस से रोगी के मन में रोग से जूझने की हिम्मत बँधती है।
पार्किनसन रोग क्या है ?
यह मस्तिष्क के एक खास क्षेत्र की कोशिकाओं के नष्ट होने से उपजा रोग है जो धीरे-धीरे बढ़ता है और हाथ-पैरों में कंपन ला देता है तथा मांसपेशियों में अकड़न और कठोरता पैदा कर देता है जिससे चलने-फिरने, काम करने में मुश्किल आने लगती है। यह रोग क्यों होता है, इसका ठीक-ठीक पता नहीं लग सका है।

लेकिन कुछ कमी जैवरासायनिक स्तर पर होती है के दो हिस्सों को जोड़ने वाली माइग्नोरट्रायशियल प्रणा तिमय होने की।
यह किस उभ में होता है और कितना आमफहम है ?
चालीस की उम्र के बाद यह रोग कभी भी शुरू हो सकता है। ले साठ के बाद इसके होने की दर बढ़ जाती है। साठ की उम्र या कर चुके एक प्रतिशत लोग इससे पीड़ित होते हैं।
क्या पार्किनसन रोग आनुवंशिक है ?
नहीं, हमारे पास ऐसे कोई सबूत नहीं हैं।
यह रोग कैसे शुरू होता है और इसमें समय के साथ क्या-क्या परिवर्तन आते हैं ?
हर मरीज के लक्षण दूसरे से अलग होते हैं। लेकिन अधिकांश मामलों में हाथ या बाँह में कंपन पहला लक्षण होता है। फिर जैसे-जैसे समय बीतता है, दोनों हाथ-पैरों में कंपन आ जाती है। यह कंपन हलकी ही होती है और आराम करते समय तथा मानसिक दबाव और घबराहट होने पर साफ नजर आती है। व्यक्ति किसी काम में लगा हो तो कंपन कम हो जाती है और नींद में बिलकुल गायब हो जाती है।
मांसपेशियों में तनाव रहता है और एक असाधारण कठोरता आ जाती है। इससे पूरी शारीरिक मुद्रा बिगड़ जाती है। कूल्हों, गर्दन, घुटनों और कोहनियों पर आदमी झुका हुआ-सा दिखता है। बटन लगाना, तस्में बाँधना तो मुश्किल हो ही जाता है, कसी से उठ कर खड़े होने और मुड़ने में भी परेशानी आ सकती है।
क्रियाशीलता मंद पड़ जाती है और कोई भी किया करने में समय लगने लगता है, मानो हाथ-पैर बंध गए हो। चलने-फिरने में मुश्किल आती हैं। काफी कोशिश करने से ही पैर आगे बढ़ पाते हैं। रुकने पर फिर दुबारा चलना शुरू करना भारी पड़ता है।
आवाज पर भी असर पड़ता है। आवाज भी हो जाती हैं और उसमें स्वरावरोह हलका पड़ जाता है जिससे उसमें निजीवित आ जाती है। इन सभी लक्षणों का मानसिक स्थिति से सीधा जुड़ाव होता है। मानसिक अशांति, तनाव, दुश्चिता, घबराहट और नाखुश की यादों में लक्षण अधिक तीव्र हो जाते हैं, जबकि मानसिक सुख-संतोष रोग को संयत रखने में सहायक साबित होता है। यद्यपि रोग समय के साथ बढ़ता है, फिर भी इलाज और अनुकूल मानसिक स्थितियाँ मिलने से मरीज कई वर्ष तक राजी-खुशी जीवन जी सकता है।
पार्किनसन रोग का इलाज क्या है ?
पार्किनसन रोग मे क्या-क्या सावधानियाँ उपयोगी साबित होती हैं?