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टीबी का आधुनिक और सफल इलाज़

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टीबी का आधुनिक और सफल इलाज़ क्या है?

आजकल पूर्वापेक्षा काफी प्रभावी एंटीबायोटिक दवाएँ उपलव्य हैं। यदि इनकी की मात्रा पर्याप्त समय तक ली जाए तो रोगी पूरी तरह ठीक हो जाता है। इस रोग का इलाज कुशल चिकित्सक से ही करवाना चाहिए। | दवाइयों द्वारा इलाज की दो तरह की विधियाँ उपलब्ध हैं। पहली, लम्बे समय वाली पुरानी विधि, जिसमें मरीज को 18 महीने तक दवाइयाँ लेनी होती हैं। दूसरी, कम समय वाली नई विधि जिसमें मात्र 6 महिने तक दवाइयाँ खानी पड़ती हैं। इस विधि का फायदा यह है कि इसमें रोगी का शरीर दवाइयों के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न नहीं कर पाता और यह विधि निष्प्रभावी साबित नहीं होती।

Tuberculosis treatment

लम्बे समय वाली चिकित्सा विधि में आइसोनियाजाइड और थायसिटाजोन रोज देते हैं और साथ स्ट्रेप्टोमाइसिन के इंजेक्शन शुरू के दो से लेकर तीन माह तक लगवाते हैं। अब इस 18 महिने वाली चिकित्सा विधि की जगह 6 महीने वाली विधि ने ली है। कम समय वाली विधि में कई तरह की दवाइयाँ अलग-अलग समय तक दी जाती हैं। शुरू के दो महीने चार तरह की दवाइयाँ रिफामसिन, आई.एन.एच.

पायरेजिनामाइड और साथ में स्ट्रेप्टोमाइसिन इंजेक्शन अथवा ऐथेमब्यूटाल देते हैं, इसके पश्चात् अगले चार महीनों तक रिफामसिन और आई.एन.एच. जारी रखने। दवाइयों द्वारा इलाज के अलावा रोगी को स्वच्छ हवा और प्रकाश वाले स्थान में रहना चाहिए। सुबह-सुबह बगीचों या खेतों में टहलते हुए लम्बी-लम्बी साँसें लेना चाहिए। साथ ही ताजा पौष्टिक आहार जिसमें विटामिन और प्रोटीन की मात्रा अधिक हो जैसे दूध, अण्डे, फल इत्यादि खाना चाहिए। इस तरह रोग समुचित इलाज के पूर्णतः ठीक हो जाता है। इसलिए इस रोग के रोगियों को घबड़ाने या चिन्ता करने की जरूरत नहीं है, बस, दवाइयों को नियमित लेने का ध्यान रखना जरूरी है।

टीबी रोग से कैसे बचा जा सकता है ?

सबसे पहला और प्रभावी बचाव का तरीका यह है कि नवजात शिशुओं को। जन्म के तुरन्त बाद अथवा 6 सप्ताह तक अन्य टीकों के साथ बी. सी. जी. का टीका भी आवश्यक रूप से लगवा देना चाहिए। । रोगी के निकट सम्पर्क में आए घर के सदस्यों अथवा अन्य व्यक्ति चिकित्सक की सलाह से सुरक्षात्मक इलाज के रूप में आई. एन. एच. और एथेमब्यूटाल की दवा नौ महिने तक खा सकते हैं। | इसके अलावा तपेदित न हो इसके लिए अन्य बातों का भी ध्यान रखें जैसे खुले और स्वच्छ वातावरण में रहना, पौष्टिक आहार का सेवन करना। शारीरिक श्रम के पश्चात् पर्याप्त आराम भी जरूरी है।

रोग पर काबू के लिए स्वास्थ्य की नियमित जाँच भी आवश्यक है। इस सबके अलावा बचाव के लिए ऐसे व्यक्तियों की जाँच की जानी चाहिए जिनको इस रोग की सम्भावना अधिक होती है-उदाहरणार्थ, बीड़ी और एस्बेस्टस के कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की जाँच रोग के लिए को जानी चाहिए। चूँकि मधुमेह के रोगियों को भी क्षय रोग की सम्भावना होती है अतः उन्हें भी जाँच करवा लेनी चाहिए। | इनके अलावा बसों के चालक, बाल बनाने वाले ड्रेसर, होटल के कर्मचारी एवं अस्पतालों में काम करने वाले चिकित्सकों, परिचारिकाओं इत्यादि को क्षयरोग से संक्रमण के लिए अपनी जाँच करवानी चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्ति अन्य लोगों में रोग आसानी से फैला सकते हैं।

क्षय रोग बीड़ी अथवा तम्बाखू को किसी भी रूप में पीने वाले व्यक्तियों में भी अधिक देखा गया है अतएव धूम्रपान करने वालों को धूम्रपान छोड़ देना चाहिए, और जैसा कि बतलाया गया है कि बीड़ी श्रमिकों को फेफड़ों का क्षय रोग बहुतायत से होता है इसलिए कारखाने के मालिकों को अपने श्रमिकों की इस रोग से सुरक्षा के व्यापक प्रबन्ध करने चाहिए जैसे काम के दौरान मास्क लगाना, कार्यस्थल पर पर्याप्त हवा और रोशनी का प्रवेश इत्यादि ।

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