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क्या आप जानते हैं की भारत में 30% से ज्यादा लोग थाइरोइड के रोगी है और 60% महिलाएं थाइरोइड से परेशान हैं भारत में यह आंकड़ा तो सिर्फ उन लोगो का है जिन लोगों की जांच हुई है। भारत में ऐसे लाखों थाइरोइड के रोगी ऐसे भी है जो इस रोग के शिकार है पर अभी तक उन्होंने अज्ञान वश इस की जांच नहीं की हैं।तो आज मैं आपको इसके बारे में बिस्तार में बताने वाला हूँ।

क्या है थाइरोइड ?
हमारे गले में अखरोट के आकार की थाइरोइड थाइरोइड ग्रंथि होती हैं। यह ग्रंथि शरीर में दो तरह के हॉर्मोन T3 और T4 बनाती हैं। यह हमारे शरीर के लिए सबसे जरुरी ग्रंथि में से एक हैं। थाइरोइड ग्रंथि शरीर में कई चीजों को नियंत्रित करती है जैसे की नींद, पाचन तंत्र, मेटाबोलिस्म, चयापचय, लिवर की कार्यप्रणाली, शरीर का तापमान नियंत्रण आदि। आप थाइरोइड ग्रंथि को शरीर का सेंट्रल कंट्रोलर मान सकते हैं।
थाइरोइड रोग क्या हैं ?
थाइरोइड रोग के मुख्य दो प्रकार की चर्चा हम यहाँ पर कर रहे हैं, हाइपोथायरायडिज्म और हयपरथयरोिडिस्म।
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हाइपोथायरायडिज्म / Hypothyroidism –इस रोग में थाइरोइड ग्रंथि में थाइरोइड हॉर्मोन कम निर्माण होता हैं और इसलिए शरीर में Thyroid Stimulating Hormone (TSH) –थाइरोइड हॉर्मोन बनाने का कार्य करनेवाला तत्व की मात्रा बढ़ जाती हैं। इसके लक्षण इस प्रकार हैं :
- वजन बढ़ना
- भूक कम लगना
- हात–पैर में सूजन
- सुस्ती
- ठण्ड अधिक लगना
- मासिक कम आना
- याददाश्त कम होना
- बाल गिरना
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हाइपरथायरायडिज्म/ Hyperthyroidism
– इस रोग में थाइरोइड ग्रंथि में थाइरोइड हॉर्मोन का निर्माण अधिक होता है और इस कारण TSH का प्रमाण कम होता हैं। इसके लक्षण इस प्रकार हैं :
- वजन कम होना
- बार–बार भूकलगना
- तनाव
- ध्यान केंद्रित न कर पाना
- तेज धड़कन
- ज्यादा पसीना आना
- नींद में कमी
- गले में सूजन
थाइरोइड की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक है। थाइरोइड के लक्षण नजर आने पर इसकी जांच अवश्य कराना चाहिए।
- थाइरोइड से पीड़ित रोगियों में अक्सर कैल्शियम की कमी होती है इसलिए दूध और कैल्शियम सप्लीमेंट लेना चाहिए।
थाइरोइड टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल कब देना चाहिएI
थायरॉइड टेस्ट के लिए आप कभी भी ब्लड सैंपल दे सकते हैं इसके लिए कोई खली पेट की जरुरत नहीं है
हाँ अगर आपके डॉक्टर यह बोलते हैं की आपको खली पेट सैंपल देना है तो आप खली पेट ही दें.
और अगर आप थाइरोइड की मेडिसन ले रहे हैं पहले से तो एक बार अपने डॉक्टर से पूछ ले की
सैंपल मेडिसन लेकर देना है या बिना मेडिसन लिए क्योंकी ये डॉक्टर पर डिपेन्ड करता की उन्हें कैसा रिजल्ट देखना हैं.
थाइरोइड हार्मोन्स का बच्चों में क्या महत्व होता है?
ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी 3) और थायरोक्सिन (टी 4) ऐसे हार्मोन्स हैं जो पहले तीन वर्षो में मस्तिष्क के सामान्य विकास के लिए बेहद आवश्यक हैं। ऐसे बच्चे जिनकी थायरॉयड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में थायरॉयड हार्मोन (जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म) नहीं बना पाती, इस तरह के बच्चे गंभीर रूप से मंदबुद्धि भी हो सकते हैं। सिर्फ तीन साल तक के बच्चे ही नहीं बल्कि इस से बड़े बच्चों में भी थायरॉयड हार्मोन का समान्य रूप से विकसित होना जरुरी है।
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शिशुओं मेंहाइपोथायरायडिज्म–
हालांकि, हाइपोथायरायडिज्म खासतौर पर मध्यम वर्ग के लोगों और बूढ़ी महिलाओं पर ज्याादा प्रभाव डालता है पर यह स्थिति किसी के अंदर भी विकसित हो सकती हैं, यहां तक कि छोटे शिशुओं में भी। शिशु बिना थायरॉयड ग्रंथि के जन्म लेते हैं या फिर उस उम्र में उनकी थायरॉयड ग्रंथि काम नहीं करती, जिसके कुछ लक्षण हो सकते हैं। जिन शिशुओं को थायरॉयड से संबंधित परेशानियां होती हैं, वह निम्न प्रकार से हो सकती हैं–
- बच्चे की त्वचा पीली और आंखें सफेद पड़ जाना(Jaundice) खासतौर पर यह तब होता है जब बच्चों का जिगर (Liver) किसी पदार्थ को ना पचा पाए, इसको बिलीरूबिन (Bilirubin) भी कहा जाता है।
- बार–बार श्वास नली का रुकना
- जीभ का अत्यधिक बढ़ जाना या फैल जाना (Protruding Tongue)
- चेहरे में सूजन प्रतीत होना
जब बच्चों में रोग विकसित होने लगता है, तब उनको कई तरह की परेशानियां होने लगती हैं, जैसे– उपयुक्त खाना खाने में परेशानियां जिस कारण से उनका सामान्य रूप से हो रहे विकास में कमी होने लगती हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे परेशानियां भी होने लगती हैं जिनके लक्षण कुछ इस प्रकार के हो सकते हैं।
- कब्ज
- खराब और कमजोर मांसपेशियां
- सामान्य से ज्यादा नींद आना
शिशुओं में हाइपोथायरायडिज्म का उपचार ना होने पर, हल्के हाइपोथायरायडिज्म के मामले में भी उनको शारीरिक और मानसिक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
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बच्चों और किशोरों मेंहाइपोथायरायडिज्म–
सामान्य रूप से बच्चे और किशोर जो हाइपोथायरायडिज्म से ग्रसित हैं उनके लक्षण आम व्ययस्क के जैसे ही हो सकते हैं, पर उनके इन सब लक्षणों के साथ–साथ कुछ अन्य स्थितियों का भी सामना करना पड़ता है, जो निम्न हैं–
- विकास में कमी, जिस कारण से लंबाई में कमी
- पक्के दातों के आने में देरी हो जाना
- तरुण अवस्था आने में देरी (Delayed growth)
- मानसिक विकास में कमी
थायरॉयड रोग से बचने के तरीके क्या हैं?
यदि थायराइड की बीमारी समय में पकड़ी जाती है, तो दवाई हालत के प्रबंधन में मदद कर सकती है। सही उपचार योजना का पालन करने के लिए हमेशा डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। कुछ अध्ययनों के अनुसार, निम्नलिखित चरण उचित थायरॉयड कार्य करने में मदद कर सकते हैं:
तनाव को कम करें: चूंकि तनाव में कोर्टिसोल का उत्पादन होता है, जिससे थायराइड फंक्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, चिंता के माध्यम से तनाव कम करने, सकारात्मक विचार या अपने पर्यावरण को बदलने से थायराइड प्रबंधन में मदद मिल सकती है।
पूरक आहार: आयोडाइन और विटामिन सी, ई और डी जैसे पूरक से थायराइड फंक्शन को मजबूत करने में मदद मिल सकती है अगर थायरॉयड इन पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है।
सोया उत्पादों और ग्लूटेन को छोड़ दें: कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि सोया और ग्लूटेन का प्रभाव थायराइड फंक्शन पर नकारात्मक पड़ता है। इन घटकों को कम करने से थायराइड फंक्शन में मदद मिल सकती है।
थायरॉयड रोगों के प्रबंधन के लिए आप क्या कर सकते हैं, के बारे में और जानने के लिए, यहां जांचें।
थायराइड फंक्शन की जांच के लिए कौन–कौन से टेस्ट निर्धारित हैं?
निम्न टेस्ट आम तौर पर थायरॉयड फंक्शन की जांच के लिए सिफारिश किए जाते हैं :
- TSH या थायरॉयड उत्तेजक हार्मोन – टीएसएच का निर्माण पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा किया जाता है और यह थायरॉयड ग्रंथि द्वारा निर्मित थायरॉयड हार्मोन के उत्पादन को उत्तेजित करता है।
- T3 – थायरॉयड ग्रंथि द्वारा निर्मित हार्मोन में से एक
- T4 – थायरॉयड ग्रंथि द्वारा निर्मित हार्मोन में से एक
उपरोक्त टेस्ट आमतौर पर थाइरोइड फ़ंक्शन टेस्ट या थायरॉयड प्रोफाइल नामक पैकेज में टेस्ट किए जाते हैं।
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